वास्तु शास्त्र के हिसाब से घर में कौन सा पत्थर लगवाना चाहिए?
परिचय: वास्तु शास्त्र में पत्थरों का महत्व
वास्तु शास्त्र एक प्राचीन भारतीय वास्तुकला विज्ञान है जिसमें भवन निर्माण से जुड़े दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसका उद्देश्य घर में ऊर्जा का संतुलन बनाकर सुख-समृद्धि लाना है। भवन निर्माण में उपयोग होने वाली सामग्री, ख़ासकर फ़र्श और दीवारों में लगने वाले पत्थर, वास्तु में बहुत महत्वपूर्ण माने गए हैं। मान्यता है कि प्राकृतिक पत्थरों में पृथ्वी तत्व की ऊर्जा निहित होती है, जो घर में सकारात्मक प्राण ऊर्जा के प्रवाह में मदद करती है
। दूसरी ओर, कृत्रिम फ़र्श सामग्री (जैसे विनाइल या लिनोलियम) से यथासंभव बचना चाहिए क्योंकि इनसे ऊर्जा प्रवाह में बाधा आ सकती है
। कुल मिलाकर, सही पत्थर का चयन घर की ऊर्जा, सौंदर्य और दीर्घायु तीनों को प्रभावित करता है। नीचे हम वास्तु शास्त्र के अनुसार अलग-अलग हिस्सों के लिए उपयुक्त पत्थरों और उनसे जुड़े नियमों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
घर के विभिन्न हिस्सों के लिए उपयुक्त पत्थर
मुख्य द्वार पर पत्थर का प्रयोग
मुख्य द्वार घर में ऊर्जा का प्रवेश द्वार होता है, इसलिए इसका वास्तु-अनुसार होना बेहद जरूरी है। वास्तु नियमों के अनुसार मुख्य दरवाज़े पर एक ऊँची दहलीज़ (थ्रेशोल्ड) होनी चाहिए, जो लकड़ी या पत्थर (विशेषकर संगमरमर) की बनी हो
। दहलीज़ न केवल घर के अंदर धूल-मिट्टी आने से रोकती है, बल्कि नकारात्मक ऊर्जा को भी جذب कर लेती है और सकारात्मक ऊर्जा को अंदर प्रवेश करने देती है
। मुख्य द्वार पर संगमरमर की चौखट शुभ मानी गई है, पर ध्यान रहे कि पत्थर में कोई दरार या टूटी किनारियां न हों। इसके अलावा, प्रवेश द्वार के सामने फ़र्श को थोड़ा ऊँचा (2-3 सीढ़ियों के रूप में) बनाना भी लाभकारी होता है, जिससे घर में ऊर्जा का प्रवाह सहज हो सके। मुख्य द्वार के आस-पास हल्के रंग का पत्थर (जैसे सफेद या हल्का बेज संगमरमर) उपयोग करने से उजियारा और सकारात्मकता आती है। मुख्य द्वार की सीढ़ियों या पोर्च में सैंडस्टोन या ग्रेनाइट जैसे मज़बूत पत्थर लगाए जा सकते हैं, बस यह सुनिश्चित करें कि सतह फिसलन भरी न हो और डिज़ाइन बहुत जटिल न हो। कुल मिलाकर, एक मज़बूत और शुभ पत्थर की दहलीज़ और स्वच्छ, बिना टूट-फूट वाला प्रवेश फ़र्श घर में सुख-समृद्धि को आमंत्रित करता है।
फ़र्श (Flooring) के लिए पत्थर
घर के फ़र्श के लिए पत्थर चुनते समय उसकी गुणवत्ता, बनावट और रंग तीनों पर ध्यान देना चाहिए। वास्तु शास्त्र में प्राकृतिक पत्थरों (जैसे कोटा स्टोन, संगमरमर, ग्रेनाइट, स्लेट आदि) को फ़र्श हेतु उत्तम माना गया है
, क्योंकि ये प्राकृतिक ऊर्जा को मुक्त रूप से प्रवाहित होने देते हैं। फ़र्श पर अत्यधिक जटिल या भड़कीले पैटर्न से बचें – सरल एवं सुव्यवस्थित डिज़ाइन शांति और सामंजस्य बढ़ाते हैं
। कुछ वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार बहुत चमकदार (हाई-ग्लॉस) पॉलिश वाले फ़र्श से परावर्तन ज्यादा होता है और घर में अस्थिरता या चंचलता का احساس हो सकता है
। इसकी तुलना में मैट या हल्की चमक वाली सतहें एक आरामदायक, प्राकृतिक माहौल बनाती हैं
। उदाहरण के लिए, कोटा स्टोन जैसे पत्थर को बिना ज्यादा पॉलिश के लगवाने से फ़र्श पर सौम्यता आती है – इसका हल्का खुरदुरा टेक्स्चर नेचुरल लुक देता है और आँखों को सुकून पहुंचाता है
। फ़र्श के रंगों की बात करें तो हल्के रंग (सफेद, ऑफ-व्हाइट, क्रीम, हल्का पीला, हल्का हरा आदि) पूरे घर में शुभ माने गए हैं
। हल्के रंगों से कमरे बड़े एवं उजले दिखते हैं और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है
, जबकि बहुत गहरे रंग फ़र्श से भारीपन महसूस हो सकता है।
हल्के रंग के संगमरमर फ़र्श का उपयोग घर में शांति और सकारात्मकता बढ़ाने में मदद करता है
। वास्तु शास्त्र के अनुसार फ़र्श बिछाने की आदर्श दिशा पूर्व से पश्चिम मानी गई है – ऐसा करने से घर के वातावरण में सामंजस्य बना रहता है
। साथ ही, यह भी ध्यान रखें कि भवन के दक्षिण तथा पश्चिम भाग का फ़र्श उत्तर एवं पूर्व की अपेक्षा थोड़ा ऊँचे स्तर पर होना चाहिए, इससे प्राकृतिक ऊर्जा का प्रवाह क्रमबद्ध रहता है
। कुल मिलाकर, फ़र्श के लिए ऐसा पत्थर चुनें जो प्राकृतिक, उच्च गुणवत्ता वाला, हल्के रंग का और आवश्यकता अनुसार पॉलिश/मैट फिनिश में हो। इससे घर की आधारभूत ऊर्जा मज़बूत होती है और परिवार को सुख-शांति मिलती है।
रसोई के लिए पत्थर
रसोई घर का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे वास्तु में आग (अग्नि) तत्व का क्षेत्र माना जाता है। रसोई के फ़र्श और काउंटरटॉप के लिए पत्थर का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए, क्योंकि इससे परिवार के स्वास्थ्य व समृद्धि पर प्रभाव पड़ता है। रसोई के फ़र्श हेतु सामान्यतः खुरदुरी बनावट वाले पत्थर या टाइल बेहतर रहते हैं ताकि फिसलन न हो। आप ग्रेनाइट, टैराज़ो, या ऐंटी-स्किड टाइल्स का प्रयोग कर सकते हैं। रंगों की दृष्टि से, रसोई में बहुत गहरे या काले फ़र्श से बचना चाहिए – वास्तु के अनुसार काले रंग के फ़र्श रसोई की ऊर्जा को दबा देते हैं और कलह या आर्थिक हानि के कारक हो सकते हैं
। इसके बजाय हल्के भूरे, हल्के हरे, पीले या क्रीम रंग के पत्थर रसोई में लगवाना शुभ माना गया है
। रसोई स्लैब (काउंटरटॉप) के लिए भी पत्थर चुनते समय वास्तु नियम ध्यान में रखें। वास्तु शास्त्र में ग्रेनाइट की तुलना में संगमरमर या अन्य प्राकृतिक पत्थर को अधिक उपयुक्त माना गया है
। विशेषकर, किचन प्लेटफॉर्म के लिए काला ग्रेनाइट प्रयोग न करने की सलाह दी जाती है
। इसकी जगह यदि पत्थर लगाना हो तो काले की बजाय हरा, नारंगी (संतरी) या पीले रंग का पत्थर चुनें, जो रसोई की ऊर्जा को संतुलित करेगा
। प्लेटफॉर्म के पत्थर का रंग रसोई की दिशा के अनुरूप रखने से भी लाभ होता है। उदाहरण के लिए, अगर रसोई पूर्व दिशा में है तो हरे या हल्के भूरे रंग का पत्थर (जैसे कोटा स्टोन या हरा संगमरमर) चुनें, दक्षिण-पूर्व या दक्षिण में भूरे, मटमैले-लाल (टेराकोटा) या हरे टोन के पत्थर अच्छे रहते हैं, पश्चिम दिशा की रसोई के लिए भूरे-पीले या ग्रे रंग उपयुक्त हैं, जबकि उत्तर-पूर्व दिशा की रसोई के लिए पीले रंग का पत्थर बेहतर माना गया है
। यदि संभव हो तो रसोई की स्लैब के लिए संगमरमर का उपयोग करें – काले संगमरमर का प्रयोग दक्षिण दिशा में किया जा सकता है, पर बाकी जगह सफेद या हरे संगमरमर को प्राथमिकता दें
। अंत में, रसोई में प्राकृतिक पत्थरों (जैसे क्वार्ट्ज, मार्बल, ग्रेनाइट) का प्रयोग उसके अग्नि तत्व को संतुलित रखता है, लेकिन सुनिश्चित करें कि पत्थर गर्म बरतनों व दाग-धब्बों को झेलने लायक मज़बूत हो। एक साफ, सुन्दर और वास्तु-अनुकूल पत्थर वाली रसोई से घर में स्वस्थ ऊर्जा का संचार होता है।
पूजा कक्ष के लिए पत्थर
पूजा कक्ष या मंदिर घर का सबसे पवित्र कोना होता है, इसलिए यहाँ उपयोग होने वाली सामग्रियों में विशेष शुद्धता व सकारात्मकता होनी चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार पूजा रूम के फ़र्श हेतु संगमरमर सबसे श्रेष्ठ पत्थर माना गया है
। सफेद या हल्के क्रीम रंग का संगमरमर पूजा स्थल पर लगाना अत्यंत शुभ फलदायी होता है
। सफेद संगमरमर अपनी शीतलता और निर्मलता के कारण देवस्थान के वातावरण को शांत और सकारात्मक बनाता है। यदि बजट या अन्य कारणों से संगमरमर संभव न हो, तो उच्च गुणवत्ता वाले सफेद या हल्के रंग के ग्रेनाइट या सिरेमिक टाइल्स का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन काले या गहरे रंग के पत्थर पूजा कक्ष में लगाने से बचें, क्योंकि गहरे रंग ऊर्जा को अवशोषित करते हैं और पूजा स्थल की शुद्ध ऊर्जा को बाधित कर सकते हैं
। कई परंपराओं में तो शौचालय या नकारात्मक स्थानों में प्रयोग हुआ पत्थर भी मंदिर में लगाना वर्जित माना जाता है, इसलिए हमेशा नया और पवित्र पत्थर ही चुनें। पूजा कक्ष की वेदी या दीवारों पर भी हल्के रंग (सफेद, हल्का पीला, हल्का नीला) के पत्थर या टाइल लगाने से शांति बढ़ती है
। अगर मूर्ति रखने के लिए प्लेटफॉर्म बनवा रहे हैं तो सफेद संगमरमर सर्वोत्तम है। कुल मिलाकर, पूजा कक्ष में हर वस्तु के साथ पत्थर का चयन भी ऐसा करें जो पवित्रता एवं सकारात्मकता को बढ़ावा दे – यानी स्वच्छ, हल्के रंग का और संभव हो तो संगमरमर का हो।
बाथरूम के लिए पत्थर
बाथरूम और टॉयलेट घर का वह हिस्सा है जहां जल तत्व प्रमुख होता है और सफाई तथा स्वच्छता का खास ध्यान रखना पड़ता है। वास्तु के अनुसार बाथरूम में फ़र्श सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो पानी से खराब न हो, साफ़ करना आसान हो और फिसले नहीं। आमतौर पर स्नानघर के फ़र्श के लिए संगमरमर या सिरेमिक टाइल्स को श्रेष्ठ माना जाता है
। संगमरमर एक प्राकृतिक पत्थर है जिसमें ठंडक रहती है तथा यह लंबी उम्र तक टिकता है, वहीं अच्छी क्वालिटी की टाइल्स पानी नहीं सोखतीं और साफ़ रहना आसान होता है। ध्यान रखें कि बाथरूम की फ़र्श या दीवार पर टूटी-फूटी टाइलें/पत्थर न लगे हों – ऐसी दरारें या टूटा फ़र्श नकारात्मक ऊर्जा को जन्म देता है और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है
। यदि कहीं फ़र्श या दीवार का पत्थर क्रैक हो जाए तो उसे तुरंत बदलवा देना चाहिए। बाथरूम में पत्थर या टाइल का रंग भी हल्का ही रखें जैसे सफेद, हल्का ग्रे, या हल्का हरा – इससे स्वच्छता व सकारात्मक एहसास बना रहता है
। बहुत गहरी रंगत (जैसे पूरी काली टाइल) बाथरूम में उचित नहीं, क्योंकि ऐसी सतह पर गंदगी जल्दी दिखाई नहीं देती और सफाई में कमी नकारात्मकता ला सकती है
। वास्तु विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बाथरूम के फ़र्श की ढलान उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रहनी चाहिए ताकि इस्तेमाल हुआ जल उसी दिशा में निकले
। यह भी माना जाता है कि ऐसा करने से नकारात्मक ऊर्जा जल के साथ बहकर उत्तर/पूर्व (जो कि सकारात्मक दिशा मानी जाती हैं) से घर से बाहर निकल जाती है
। सुरक्षा की दृष्टि से बाथरूम में पत्थर की सतह ज़्यादा चमकदार/पॉलिश न होकर हल्की खुरदुरी हो तो बेहतर है, क्योंकि चिकने फ़र्श पर पानी पड़ने से फिसलन होती है। स्लेट जैसे नैसर्गिक रूप से स्लिप-रेज़िस्टेंट (पैर न फिसलने देने वाले) पत्थर बाथरूम में काफी उपयोगी होते हैं
। कुल मिलाकर, बाथरूम के लिए ऐसा पत्थर चुनें जो जल-रोधी, मज़बूत, आसानी से साफ होने वाला और हल्के रंग का हो। बाथरूम का रख-रखाव एवं स्वच्छ ऊर्जा घर के बाकी माहौल पर भी असर डालती है, इसलिए यहां किसी भी तरह की उपेक्षा से बचें।
गार्डन व बाहरी स्थानों के लिए पत्थर
घर के बाहरी हिस्से, जैसे गार्डन, पोर्च, ड्राइववे आदि में पत्थरों का उपयोग सजावट और सौंदर्य के साथ-साथ वास्तु संतुलन बनाने में भी किया जाता है। खासकर गार्डन में पत्थरों की व्यवस्था से प्राकृतिक तत्वों को संतुलित किया जा सकता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार बगीचे के दक्षिण-पश्चिम कोने में भारी पत्थरों का प्रयोग अत्यंत शुभ होता है
। दक्षिण-पश्चिम दिशा पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करती है और यहां एक लघु रॉक गार्डन या पत्थर की सजावटी मूर्तियाँ लगाने से स्थायित्व व मजबूती की ऊर्जा बढ़ती है
। आप इस कोने में बड़े सजावटी पत्थर, पत्थरों का टीला (मानो एक छोटा पर्वत) या पत्थर की बेंच आदि रख सकते हैं। इससे गार्डन में स्थिरता का एहसास होगा और घर को आधार मिलता है। उत्तर-पूर्व दिशा गार्डन में जल तत्व से संबंधित मानी जाती है
। इसलिए यदि आप बगीचे के उत्तर-पूर्व कोने में कोई फव्वारा, झरना या पानी की चीज़ (बर्ड बाथ, तालाब) लगाना चाहें, तो उसे सफेद या हल्के रंग के पत्थर से बनाना शुभ रहेगा
। उदाहरण के लिए, सफेद संगमरमर की फ़व्वारे की ट्रे या सैंडस्टोन का छोटा तालाब वास्तु अनुरूप होगा। इससे जल तत्व सक्रिय होगा और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ेगा। गार्डन की पथवे (पैदल मार्ग) के लिए भी प्राकृतिक पत्थर जैसे सैंडस्टोन, कोटा स्टोन, या कंकड़ पत्थर (पेबल्स) का इस्तेमाल करें। सैंडस्टोन एक प्राकृतिक बलुआ पत्थर है जिसकी सतह थोड़ी खुरदुरी होती है, यह बाहरी रास्तों के लिए बढ़िया विकल्प है क्योंकि उस पर फिसलन कम होती है और यह विभिन्न सुंदर रंगों में उपलब्ध है
। ध्यान रखें कि समय के साथ सीधे सूर्य प्रकाश में कुछ पत्थरों (खासकर बलुआ पत्थर) का रंग थोड़ा फीका पड़ सकता है
, इसलिए सीलेंट आदि से उनका संरक्षण करें। अगर गार्डन में बैठने का पैविलियन या चबूतरा बना रहे हैं तो वहां लकड़ी के साथ पत्थर (जैसे कोटा या लाल बलुआ पत्थर) का संयोजन अच्छा रहता है। भारी पत्थरों को हमेशा दक्षिण या पश्चिम की ओर रखें और उत्तर/पूर्व क्षेत्र को खुला या हल्का ही रहने दें (वहाँ छोटे कंकड़, बजरी आदि बिछा सकते हैं)। कुल मिलाकर, गार्डन और बाहरी स्थानों में पत्थरों का प्रयोग इस तरह करें कि पांचों तत्व (पृथ्वी, जल, आग, वायु, आकाश) का संतुलन बना रहे
– भारी पत्थर पृथ्वी तत्व को मज़बूत करेंगे, संगमरमर/सफेद पत्थर जल तत्व को संतुलित करेंगे, लाल पत्थर या टेराकोटा गमले आग तत्व को दर्शाएंगे, पवन घंटियों जैसी चीजें वायु तत्व के लिए और
खुला आसमान आकाश तत्व के लिए जगह देगा।
प्रमुख पत्थरों के वास्तु अनुसार गुण और उपयोगिता
घर में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले विभिन्न प्राकृतिक पत्थरों के अपने-अपने गुण होते हैं। नीचे कुछ प्रमुख पत्थरों – कोटा स्टोन, संगमरमर, ग्रेनाइट, स्लेट, सैंडस्टोन – के वास्तु अनुसार गुण और उनकी उपयोगिता दी गई है:
कोटा स्टोन (Kota Stone): कोटा स्टोन एक प्राकृतिक चूना पत्थर है जो मुख्यतः हरे-भूरे रंगों में राजस्थान के कोटा क्षेत्र से प्राप्त होता है। वास्तु की दृष्टि से कोटा स्टोन फ़र्श के लिए बहुत अच्छा माना जाता है क्योंकि यह पृथ्वी तत्व से जुड़ा है और घर में स्थिरता लाता है। इसका हल्का हरा-ग्रे रंग आंखों को सुकून देता है और इसका रफ़ (अनपॉलिश्ड) रूप शीतल, शांत ऊर्जा प्रदान करता है
। कोटा स्टोन की सतह ठंडी होती है, इसलिए यह गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में फ़र्श को ठंडा रखता है। वास्तु विशेषज्ञों ने नोट किया है कि बिना ज्यादा चमक वाले कोटा पत्थर के फ़र्श से कमरे में शांति का माहौल बनता है
। यह पत्थर किफ़ायती, टिकाऊ और एंटी-स्लिप (फिसलन-रोधी) गुणों वाला होता है, इसलिए इसे आंगन, लिविंग रूम, बरामदे तथा गार्डन पाथवे में व्यापक रूप से लगाया जाता है। कोटा स्टोन का हल्का हरा रंग उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशाओं के कमरों में लगाना शुभ होता है, जबकि इसकाकोई भी रंग प्राकृतिक टोन में होने के कारण दक्षिण-पश्चिम में भी स्थिरता प्रदान करता है। कुल मिलाकर, कोटा स्टोन एक संतुलित ऊर्जा देने वाला, सौम्य और बहुउपयोगी पत्थर है जो वास्तु अनुरूप घर में सकारात्मकता लाता है।
अपरिष्कृत कोटा स्टोन का फ़र्श घर के वातावरण में शीतलता और स्थिरता भर देता है
संगमरमर/मार्बल (Marble): संगमरमर सुंदरता और शुद्धता का प्रतीक माना जाता है। यह एक रूपांतरित (metamorphic) चट्टान है जो विभिन्न रंगों – शुद्ध सफेद से लेकर हल्के पीले, हरे, गुलाबी, भूरे – में उपलब्ध है। वास्तु शास्त्र में संगमरमर को ‘वास्तु पत्थर’ का दर्जा दिया जाता है, क्योंकि इसमें प्राकृतिक तौर पर सकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करने के गुण हैं
। संगमरमर का शीतल प्रभाव घर में एक शांत एवं सुखद वातावरण बनाता है तथा यह मानसिक एकाग्रता को बढ़ावा देने में सहायक है
। सफेद संगमरमर विशेष रूप से पवित्र और शुभ माना गया है – इसे उत्तर, उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा के कमरों में लगाने से शांति, स्पष्टता और सकारात्मकता बढ़ती है
। इसी तरह हरा संगमरमर धन-संपदा और प्रगति का कारक है, जो दक्षिण या दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगाने से समृद्धि की ऊर्जा लाता है
। गुलाबी संगमरमर प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है, जिसे दक्षिण-पश्चिम (घर का संबंधों का क्षेत्र) में लगाने से दांपत्य एवं पारिवारिक सामंजस्य बढ़ता है
। पीला संगमरमर बुद्धिमत्ता और विद्या का कारक माना जाता है तथा उत्तर-पूर्व (ईशान) दिशा में इसे लगाने से अध्ययन एवं मानसिक दृष्टि से लाभ होता है
। संगमरमर के चमकदार सफेद या हल्के रंग घर के मुख्य हाल, मंदिर, शयनकक्ष आदि हर जगह अनुकूल होते हैं और रोशनी परावर्तित करके कमरे को उजला व विशाल दिखाते हैं
। हाँ, ध्यान रहे कि गहरे काले रंग का संगमरमर पूरे घर में फ़र्श के तौर पर लगाने से बचना चाहिए – ऐसे गहरे पत्थर ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं और घर का माहौल भारी बना सकते हैं
। अगर आपको काले रंग का पत्थर बहुत पसंद है तो वास्तु के अनुसार उसे सिर्फ उत्तर दिशा (जिसका कारक जल तत्व/शनि है) के किसी हिस्से में सीमित मात्रा में प्रयोग करें
। कुल मिलाकर, संगमरमर अपनी सुंदरता, ठंडक और सकारात्मक गुणों के कारण वास्तु विशेषज्ञों की पहली पसंद है और सही रंग-दिशा के तालमेल के साथ इसका उपयोग घर की उन्नति व सुख-शांति में सहायक होता है।
ग्रेनाइट (Granite): ग्रेनाइट एक आग्नेय (igneous) चट्टान है जो अपनी कठोरता और टिकाऊपन के लिए जानी जाती है। यह काला, भूरा, लाल, नीला, हरा आदि कई रंगों और प्राकृतिक पैटर्न्स में मिलता है। ग्रेनाइट की बनावट दानेदार होती है, जिसमें प्राकृतिक चमक के साथ क्रिस्टल से लेकर बारीक नमूनों का मिश्रण रहता है। वास्तु शास्त्र में ग्रेनाइट को लेकर मिश्रित राय मिलती है – एक ओर इसकी मज़बूती इसे रसोई जैसे जगहों के लिए व्यावहारिक बनाती है, वहीं दूसरी ओर बहुत गहरे रंग वाली ग्रेनाइट (खासकर काली ग्रेनाइट) को सीमित प्रयोग करने की सलाह दी जाती है। ग्रेनाइट पत्थर आग्नेय होने से इसमें अग्नि तत्व की ऊर्जा अधिक मानी जा सकती है, अतः इसे रसोई के काउंटर, बार्बेक्यू क्षेत्र, फायरप्लेस फ्रेम आदि में उपयोग करना तर्कसंगत है। रसोई में भी वास्तु अनुसार हल्के भूरे या हरे ग्रेनाइट का फ़र्श या स्लैब लगाए जा सकते हैं, परंतु पूरी तरह काला ग्रेनाइट स्लैब लगाने से बचना चाहिए
। ग्रेनाइट का बड़ा लाभ यह है कि यह खरोंच, गर्मी और दाग-धब्बों के प्रति काफी प्रतिरोधक है, इसलिए इसे उच्च उपयोग वाले क्षेत्रों (जैसे सीढ़ियाँ, किचन प्लेटफॉर्म, ड्राइववे) में लगाया जा सकता है। यदि आप ग्रेनाइट का प्रयोग कर रहे हैं तो उसके रंग का चयन कमरे की दिशा एवं用途 के हिसाब से करें: हल्का ग्रे या क्रीम ग्रेनाइट लिविंग रूम/हॉल में (उत्तर या पूर्व दिशा के लिए), लाल या पिंक टोन ग्रेनाइट दक्षिण दिशा में (जैसे नामपट्ट या खास डेकोरेटिव वॉल पैनल के लिए), हरा ग्रेनाइट दक्षिण-पश्चिम में (स्टडी या स्टोर रूम फर्श हेतु) आदि उचित रहते हैं। गहरे चमकदार ग्रेनाइट फर्श से बचें क्योंकि अति चमकदार काला/नीला ग्रेनाइट घर में भारीपन ला सकता है
। कुल मिलाकर, ग्रेनाइट एक अति टिकाऊ और सुंदर पत्थर है जिसका समझदारी से रंग एवं स्थान के अनुसार उपयोग करने पर यह लंबे समय तक सकारात्मक परिणाम देता है।
स्लेट (Slate): स्लेट एक प्राकृतिक पत्थर है जो परतों के रूप में पहाड़ी क्षेत्रों से निकाला जाता है। इसका रंग-रूप काफी विविध हो सकता है – गाढ़ा भूरा, ग्रे, काला, हरा, या इनमें मिला-जुला बहुरंगी पैटर्न स्लेट में देखने को मिलता है। स्लेट की खासियत है इसकी खुरदुरी सतह और उच्च घनत्व, जिस कारण यह स्लिप-रेज़िस्टेंट (फिसलन-रोधी) और मौसम प्रतिरोधी होता है
। वास्तु की दृष्टि से स्लेट पत्थर घर के उन हिस्सों में उपयुक्त माना जा सकता है जहाँ पानी का संपर्क या बाहरी खुला वातावरण हो – जैसे बाथरूम, गार्डन, टैरेस या балकनी फ़र्श। बाथरूम में स्लेट के प्रयोग से एक प्राकृतिक स्पा-जैसा एहसास आता है और फर्श गीला होने पर भी पैर नहीं फिसलते। स्लेट का गाढ़ा रंग यदि हो तो वास्तु सलाह देती है कि उस कमरे में प्रचुर प्रकाश व वेंटिलेशन रखें ताकि संतुलन बना रहे (क्योंकि गहरे रंग ऊर्जा अवशोषित करते हैं)। स्लेट विभिन्न अनूठे रंगों/पैटर्न्स में मिलता है, इसलिए इसे फ़्लोर के अलावा दीवारों पर ऐक्सेंट वॉल की तरह भी लगा सकते हैं – जैसे पूल या फव्वारे की पीछे की दीवार पर रंग-बिरंगा स्लेट सजावटी और वास्तु-दृष्टि से आकर्षक होता है। हल्के ग्रे या हरे स्लेट पत्थर को उत्तर-पश्चिम दिशा की दीवार या फर्श पर लगाया जाए तो यह वायु तत्व को स्थिरता देता है और शांति बढ़ाता है। स्लेट का एक लाभ यह है कि यह Eco-friendly और न्यूनतम प्रसंस्करण के बाद सीधे उपयोग होने वाला पत्थर है, तो इसका प्राकृतिक कंपन घर में सकारात्मक लहर फैलाता है। ध्यान रहे कि स्लेट अपेक्षाकृत पतला पत्थर होता है और बहुत तेज़ आघात लगने पर दरक सकता है
इसलिए भारी वस्तुएँ गिरने से बचाएं। सही उपयोग के साथ स्लेट एक सुन्दर, सुरक्षित और वास्तु-अनुकूल विकल्प सिद्ध होता है।
सैंडस्टोन (Sandstone): सैंडस्टोन, जिसे हिंदी में बलुआ पत्थर भी कहते हैं, एक अवसादी (sedimentary) पत्थर है जो रेत (बालू) और खनिजों के कणों के दबाव से बनता है। भारत में यह लाल, गुलाबी, बेज, पीला, सफेद जैसे कई रंगों में राजस्थान, मध्यप्रदेश आदि से प्राप्त होता है। सैंडस्टोन की बनावट प्राकृतिक रूप से थोड़ी खुरदुरी होती है, जिससे यह फ़र्श के लिए स्लिप-रेज़िस्टेंट विकल्प बन जाता है
। बाहरी परिसर (गार्डन, लॉन, रास्ते) के लिए यह एक लोकप्रिय पत्थर है क्योंकि यह प्रकृति के साथ घुल-मिल जाता है और ज़मीन को सांस लेने देता है। वास्तु के अनुसार सैंडस्टोन में मिट्टी (पृथ्वी) तत्व प्रबल होता है, अतः इसका प्रयोग दक्षिण-पश्चिम दिशा में करने से स्थिरता और भारीपन (सकारात्मक अर्थ में) आता है। उदाहरण के लिए, घर की बाहरी बाउंड्री या दीवारों में बेज/पीला सैंडस्टोन लगाना दक्षिण-पश्चिम को सुदृढ़ करता है। इसी प्रकार उत्तर-पूर्व दिशा में हल्का सफेद या क्रीम सैंडस्टोन किसी छोटी बाउंड्री वॉल या फव्वारे में उपयोग कर सकते हैं ताकि वह जल तत्व के साथ तालमेल बनाए। सैंडस्टोन की रंग विविधता भी फायदेमंद है – गुलाबी, लाल या चॉकलेटी सैंडस्टोन को आप दक्षिण-पूर्व (अग्नि दिशा) के बाहरी BBQ या आग वाले क्षेत्र में लगा सकते हैं, वहीं हल्का पीला-सफेद सैंडस्टोन उत्तर या पूर्व दिशा के आउटडोर फ़र्श हेतु उत्तम है। एक बात ध्यान रखें, सैंडस्टोन समय के साथ धूप-बारिश में अपना रंग थोड़ा हल्का कर सकता है
। इससे बचाव के लिए पत्थर पर सीलेंट करा सकते हैं या नियमित देखरेख से उसकी चमक बरक़रार रखी जा सकती है। सैंडस्टोन संगमरमर या ग्रेनाइट जितना ठोस नहीं होता, इसलिए भारी वजन या अंदरूनी घर के मुख्य फर्श हेतु यह कम इस्तेमाल होता है। लेकिन दीवारों की क्लैडिंग, कॉलम या इंडोर ऐक्सेंट के रूप में हल्के रंग का सैंडस्टोन एक गर्मजोशी भरा वातावरण देता है और वास्तु के अनुसार पृथ्वी तत्व को बढ़ाता है। कुल मिलाकर, सैंडस्टोन एक प्राकृतिक सौंदर्ययुक्त पत्थर है जिसका सही दिशा व स्थान पर प्रयोग घर में स्थायित्व और सौंदर्य दोनों लेकर आता है।
किन पत्थरों से बचना चाहिए और क्यों
वास्तु शास्त्र में कुछ पत्थरों या उनके उपयोग के तरीकों को अशुभ या हानिकारक माना गया है। नीचे ऐसे ही कुछ बिंदु दिए गए हैं जिनका ध्यान पत्थर चुनते समय रखना चाहिए:
बहुत गहरे या काले रंग के पत्थर: घर के मुख्य फ़र्श या बड़े क्षेत्रों के लिए अत्यधिक गहरे रंग (विशेषकर काला) के पत्थरों से बचना चाहिए। वास्तु के अनुसार गहरे रंग के पत्थर (जैसे काला संगमरमर या काला ग्रेनाइट) शुभ नहीं माने जाते क्योंकि ये प्रकाश और ऊर्जा को अवशोषित कर लेते हैं, बजाय उन्हें परावर्तित करने के
। इससे घर का वातावरण भारी या दमनकारी हो सकता है। काले पत्थर लगाने से कुछ विशेष दिशाओं (उत्तर/पश्चिम) को छोड़कर अक्सर नेगेटिविटी बढ़ती है और परिवार जन के मन पर बोझ सा महसूस हो सकता है। इसलिए फ़र्श, दीवार या किचन काउंटरटॉप में पूरी तरह काले पत्थर के इस्तेमाल से बचें, या उसका संतुलित उपयोग करें।
कृत्रिम या सिंथेटिक पत्थर/टाइल्स: आजकल बाज़ार में कई कृत्रिम सामग्री (जैसे सेरामिक में प्रिंटेड मार्बल लुक टाइल, विनाइल फ्लोरिंग, इंजीनियर्ड स्टोन) उपलब्ध हैं जो देखने में प्राकृतिक पत्थर जैसे लगते हैं। हालाँकि वास्तु शास्त्र प्राकृतिक सामग्रियों को प्राथमिकता देता है। सिंथेटिक विनाइल, लिनोलियम जैसी चीज़ों को जीवंत ऊर्जा का अभाव माना गया है और ये घर में ऊर्जा के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित कर सकती हैं
। इसलिए जहाँ तक संभव हो, वास्तविक प्राकृतिक पत्थर या उच्च गुणवत्ता वाली संगमरमर/ग्रेनाइट की स्लैब, टाइलें प्रयोग करें। अगर बजट या परिस्थितिवश आपको कृत्रिम टाइल लगानी भी पड़े, तो भी कम से कम फ़र्श की अंतिम परत में एक प्राकृतिक तत्व (जैसे पत्थर या लकड़ी की दुहरी परत) जोड़ने का प्रयास करें।
टूटे-फूटे या दरार वाले पत्थर: कोई भी पत्थर, चाहे कितना भी शुभ क्यों न हो, अगर टूटा हुआ है या उसमे क्रैक/दरारें हैं तो उसे प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। वास्तु के अनुसार फ़र्श या दीवारों पर टूटी हुई टाइलें, फटी दरारें बहुत अशुभ प्रभाव डालती हैं – इनसे परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य एवं मन पर नकारात्मक असर पड़ता है
। टूटी दहलीज़ या चटक गया काउंटरटॉप धन हानि और कलह का कारण भी माना जाता है। इसलिए पत्थर लगवाते समय एक-एक स्लैब/टाइल को अच्छी तरह जाँच लें कि कहीं वह क्षतिग्रस्त तो नहीं। स्थापना के बाद भी यदि कोई हिस्सा टूट जाए या क्रैक दिखे, तो तुरंत उसे बदलने की व्यवस्था करें।
असमान आकार या अनियमित कट के पत्थर: आजकल कुछ लोग डेकोर के लिए अनियमित आकार के पत्थरों (crazy paving) का उपयोग फ़र्श या दीवारों में करने लगे हैं। किंतु वास्तु के अनुसार फ़र्श की सतह हमेशा नियमित ज्यामितीय आकारों (वर्गाकार, आयताकार) से बनी होनी चाहिए
। असमान आकार या तिरछे कट वाले पत्थरों की फिटिंग से उर्जा संतुलन गड़बड़ा सकता है और देखने में भी अस्थिरता लगती है। बेहतर है आप बड़े साइज की स्क्वेयर/रेक्टेंगल टाइल्स या स्लैब्स उपयोग करें, जिससे न्यून जोड़ हों और एकरूपता दिखे। इसी प्रकार बहुत भड़कीले या उलझे पैटर्न वाले पत्थरों (जैसे अत्यधिक वेन्स/दाग वाली मार्बल) से बचें – उनके निशान कभी-कभी नकारात्मक आकृतियों जैसे दिख सकते हैं जो अवचेतन मन को परेशान कर सकते हैं।
नकारात्मक ऊर्जावाले स्थल से लाए पत्थर: यह एक सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण बिंदु है। अगर संभव हो तो ऐसे पत्थर से बचें जो किसी पुरानी गिरती हुई इमारत, कब्रिस्तान, अस्पताल या नकारात्मक इतिहास वाले स्थान से री-साइकिल होकर लाए गए हों। पत्थरों में ऊर्जा को धारण करने की क्षमता होती है, और उस पत्थर का अतीत अगर नकारात्मक रहा हो तो वह ऊर्जा आपके नए घर में अवांछित प्रभाव डाल सकती है। हमेशा नई खान (quarry) से निकले प्रथम-हाथ के पत्थरों को तराशकर लगवाएँ। पुराने पत्थरों को पुनः प्रयोग में लाना पर्यावरण हेतु अच्छा हो सकता है, लेकिन वास्तु के अनुसार वह पिछले स्थान की ऊर्जा भी लाते हैं – इसलिए बहुत सतर्क रहें।
पत्थरों के रंग, बनावट (Texture) और दिशा के अनुसार प्रभाव
घर में किस दिशा में कौन सा रंग/प्रकार का पत्थर लगे, इसका घर की ऊर्जा पर बड़ा असर होता है। हर दिशा वास्तु में एक तत्व और रंग से जुड़ी होती है, अतः पत्थर का रंग एवं बनावट चुनते समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए:
हल्के बनाम गहरे रंग का प्रभाव: हल्के रंग (सफेद, क्रीम, हल्का पीला, हल्का हरा, आसमानी) पूरे घर के लिए ज्यादातर शुभ माने जाते हैं। ये रंग प्रकाश को परावर्तित करते हैं और कमरों में उजाला एवं सकारात्मकता बनाए रखते हैं
। खासकर उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व दिशा (जिन्हें जल एवं वायु तत्व की दिशा कहा गया है) में सफेद/क्रीम जैसे हल्के रंग के पत्थर (संगमरमर, सफेद ग्रेनाइट) लगाने से ऊर्जा में शीतलता और शांति आती है
। दूसरी ओर बहुत गहरे रंग (काला, गहरा भूरा, गहरा नीला) कुछ विशेष स्थितियों को छोड़कर टालने चाहिए। यदि आपका ड्राइंग रूम पश्चिम या दक्षिण-पश्चिम दिशा में है और आप वहां गहरे रंग का पत्थर लगाना चाहते हैं, तो ध्यान रखें कि कमरा बड़ा हो, प्राकृतिक रोशनी प्रचुर मात्रा में हो, अन्यथा वह पत्थर उस कोने को दबा देगा। दिशाओं के हिसाब से रंग चुनने का एक सारांश यूँ है:
उत्तर या उत्तर-पूर्व (जल एवं ईशान कोण): सफेद, हल्का नीला, सिल्वर ग्रे या हल्का हरा पत्थर – ये रंग शांति और ज्ञान के ऊर्जा केंद्र को प्रबल करते हैं।
पूर्व (सूर्य ऊर्जा, वायु तत्व): हल्का हरा, हल्का भूरा या पीला पत्थर – ये उगते सूर्य की ऊर्जा को संतुलित कर घर में नई शुरुआत का संचार करते हैं।
दक्षिण-पूर्व (अग्नि कोण): गुलाबी, हल्का नारंगी, लाल बलुआ पत्थर – अग्नि तत्व को संतुलित करने के लिए सौम्य लालिमा वाले पत्थर (बहुत चटख लाल नहीं) यहाँ उपयुक्त हैं, जो रसोई आदि में प्रयोग किए जा सकते हैं।
दक्षिण (दक्षिण दिशा, मंगल का क्षेत्र): हल्का नारंगी, पिंक या बेज मार्बल/ग्रेनाइट – इससे अग्नि तत्व नियंत्रित रहता है और ऊर्जा अधिक संतुलित रहती है।
दक्षिण-पश्चिम (पृथ्वी तत्व का क्षेत्र): हल्का हरा, हल्का भूरा, पीला या गुलाबी पत्थर – पृथ्वी तत्व को संतुलित रखने के लिए हरित-पीत रंग अच्छे हैं। हरा ग्रेनाइट/मार्बल धन स्थिर करता है, तो गुलाबी संगमरमर रिश्तों में मधुरता लाता है
पश्चिम (आकाश/वायु का मिश्रित क्षेत्र): क्रीम, हल्का पीला, ग्रे या हल्का नीला पत्थर – पश्चिम में मध्यम टोन के उजले पत्थर लगाने से सौम्यता रहती है और पश्चिम की भारी ऊर्जा नरम पड़ती है।
उत्तर-पश्चिम (वायु तत्व): सफेद, हल्का ग्रे, हल्का नीला पत्थर – ये रंग वायु तत्व को सामंजस्य देते हैं और उत्तर-पश्चिम में संतुलन लाते हैं।
उपरोक्त निर्देश कठोर नियम न होकर एक मार्गदर्शिका हैं; ध्यान रखें कि रंग संतुलन पूरे घर स्तर पर देखना जरूरी है। अगर फ़र्श गहरे रंग का है तो दीवारों व फर्नीचर को हल्का रखें और vice-versa, ताकि रंगों में सामंजस्य बना रहे।
बनावट (Texture) का प्रभाव: पत्थर की बनावट – अर्थात उसकी सतह का मैटे या चमकदार, चिकना या खुरदुरा होना – भी ऊर्जा को प्रभावित करता है। वास्तु विशेषज्ञ बताते हैं कि बेहद चमकदार, प्रतिबिंबित सतह (मसलन मिरर-पॉलिश ग्रेनाइट) कहीं-कहीं सुंदर दिखती है, परंतु पूरे फ़र्श में इसका इस्तेमाल करने से एक बेचैनी या उतावला माहौल बन सकता है
। ज्यादा चमक आँखों और मन दोनों को अस्थिर कर सकती है। इसके विपरीत मैट या साटन फ़िनिश पत्थर एक सुखद, स्थिर माहौल देता है
। गृहस्थ जीवन में शांति बनाए रखने के लिए लिविंग रूम, बेडरूम आदि के फ़र्श हेतु बहुत ज़्यादा चमकदार पत्थर लेने से बचें। यदि आप मार्बल लगा रहे हैं तो हाई-ग्लॉस पॉलिश की बजाय हल्की चमक या होंड फिनिश बेहतर हो सकती है। इसी प्रकार, खुरदुरी बनावट वाले पत्थर (जैसे रफ़ कोटा स्टोन, टंबल फिनिश सैंडस्टोन, फ्लेम्ड ग्रेनाइट) ज़मीन से जुड़ाव और नेचुरल एहसास कराते हैं। ऐसे पत्थर वास्तु में ग्राउंडिंग (भूमि से ऊर्जा लेना) के लिए अच्छे माने जाते हैं, खासकर गार्डन, आंगन या गाँव की शैली वाले घर में। खुरदुरी सतह के पत्थर पानी वाले क्षेत्रों के लिए भी अच्छे हैं क्योंकि ये फिसलन कम करते हैं
– जैसे बाथरूम, स्विमिंग पूल के किनारे, बाहरी सीढ़ियाँ इत्यादि। दूसरी ओर, बहुत ज्यादा असमतल या ऊबड़-खाबड़ पत्थर अंदरूनी घर में इस्तेमाल न करें क्योंकि उनमें धूल-गंदगी फंस सकती है और सफाई व ऊर्जा का ठहराव हो सकता है।
दिशा अनुसार पत्थर का भार और ऊँचाई: वास्तु में यह भी सिद्धांत है कि घर के अलग-अलग भागों का वजन या ऊँचाई अलग होनी चाहिए। उदाहरणस्वरूप, दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी व ऊँचा रखना चाहिए जबकि उत्तर-पूर्व को हल्का व नीचा। पत्थर के चयन में भी आप यह ध्यान रख सकते हैं कि घर के दक्षिण-पश्चिम कमरों में अपेक्षाकृत भारी पत्थर (जैसे ग्रेनाइट, काला कोटा) लगाएँ और उत्तर-पूर्व में हल्के रंग व कम वजन वाले पत्थर (संगमरमर, सफेद पत्थर) लगाएँ। फ़र्श बिछाते समय दक्षिण या पश्चिम की ओर फ़र्श की ऊँचाई थोड़ी ज़्यादा रखें
– उदाहरण के लिए, लिविंग रूम (उत्तर-पूर्व) यदि 1 इंच पत्थर से बना है तो मास्टर बेडरूम (दक्षिण-पश्चिम) में 1.5 इंच मोटा पत्थर लें या फ़र्श को हल्का उठा दें। इससे घर में स्थिरता का एहसास बढ़ता है और उर्जा का प्रवाह सही रहता है। इसके अलावा पत्थर बिछाने की दिशा पूर्व से पश्चिम रखें (पत्थर या टाइल इस दिशा में लाइन से लगें)
; कई वास्तु सलाहकार मानते हैं कि इससे पृथ्वी का चुम्बकीय बल संतुलित रहता है और घर में सुख-शांति बनी रहती है।
नक्काशी एवं प्रतीक: पत्थरों पर की गई नक्काशी या उकेरे गए चित्र भी ध्यान देने योग्य हैं। मुख्य द्वार की दहलीज़ पर कभी-कभी शुभ चिह्न (जैसे लक्ष्मी पादुकाएँ) संगमरमर में खुदी होती हैं, यह शुभ होती हैं। लेकिन फ़र्श के पत्थरों में कोई ऐसी प्राकृतिक आकृति (pattern) दिखाई दे जो नकारात्मक हो (जैसे डरावना चेहरा, रोता हुआ आकृतिबंध) तो उसे लगाने से बचें – हालाँकि यह दुर्लभ है, पर संगमरमर/ग्रेनाइट की वीनिंग कभी-कभी आकृति जैसी दिख सकती है, तो पहले ही जाँच लें। शुभ प्रतीक वाले पत्थर (स्वस्तिक टाइल, गणेश आकृति उत्कीर्ण पत्थर) वास्तु में सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाते हैं, पर इन्हें फ़र्श की उस जगह न लगाएँ जहाँ पैरों तले रौंदे जाएँ, बल्कि दीवार या ऊँचे स्थान पर लगाएँ।
वास्तु अनुरूप पत्थर चुनने के लिए कुछ व्यावहारिक सुझाव
अंत में, यहाँ कुछ व्यावहारिक टिप्स दिए जा रहे हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने घर के लिए वास्तु-अनुरूप पत्थर का चयन कर सकते हैं:
प्राकृतिक और उच्च गुणवत्ता को प्राथमिकता दें: पत्थर हमेशा अच्छी क्वालिटी का और प्राकृतिक स्रोत से लेना चाहिए। प्राकृतिक मार्बल, ग्रेनाइट, कोटा जैसे पत्थर जमीन की ऊर्जा के साथ सामंजस्य बिठाते हैं और सकारात्मक तरंगों को घर में प्रसारित करते हैं
। सस्ते या मिलावटी पत्थरों से बचें – न सिर्फ उनकी उम्र कम होती है, बल्कि वे ऊर्जा संतुलन में बाधा भी डाल सकते हैं। पत्थर खरीदते समय उसके स्रोत, ग्रेड और प्रसंस्करण (polish/honing) की जानकारी अवश्य लें।
सही आकार और मात्रा लें: पत्थर कटवाते समय यह सुनिश्चित करें कि सभी स्लैब या टाइलें नियमित आकार में कटें – अधूरा तिरछा कट या अजीब आकार न बनाएं। फ़र्श के पत्थरों के लिए चौकोर या आयताकार टुकड़े वास्तु में सबसे बेहतर माने जाते हैं
। गोल या अनियमित टाइलें सिर्फ सजावटी बॉर्डर आदि में प्रयोग करें। एक आकार की होने से बिछाने में आसानी रहती है और ऊर्जा का बहाव भी लगातार होता है। साथ ही, ज़रूरत से थोड़ा अधिक पत्थर खरीदें ताकि भविष्य में किसी मरम्मत के समय उसी बैच/शेड का पत्थर मिल सके।
दिशा और कमरे के अनुसार पत्थर चुनें: हर कमरे की दिशा और उसका उपयोग ध्यान में रखकर पत्थर का रंग व प्रकार चुनें। उदाहरण के लिए, पूजा कक्ष उत्तर-पूर्व में है तो सफेद संगमरमर बिलकुल उपयुक्त है, वहीं रसोई दक्षिण-पूर्व में है तो हल्का भूरा/हरा ग्रेनाइट या संगमरमर लें। अगर कोई कमरा बहुत ज़्यादा धूप/गर्मी लेता है (दक्षिण-पश्चिम) तो वहाँ ठंडक देने वाला पत्थर (कोटा, सफेद मार्बल) लगाएँ। कमरे छोटे हों तो हल्के रंग के पत्थर चुनें ताकि विशालता का एहसास हो, बड़े हाल/ऑफिस रूम में आप कहीं-कहीं गहरा पत्थर एक्सेंट में इस्तेमाल कर सकते हैं।
पॉलिश, बनावट और फिनिश पर ध्यान दें: पत्थर की अंतिम फिनिश आपके उपयोग और वास्तु दोनों अनुसार होनी चाहिए। फ़र्श के लिए बहुत अधिक चमकदार सतह (जैसे पॉलिश ग्रेनाइट) से बचें, खासकर बेडरूम या लिविंग एरिया में
। मैट या एंटीस्किड फिनिश ज़मीन के लिए बेहतर रहते हैं। दीवारों या काउंटरटॉप पर आप थोड़ा ग्लॉसी फिनिश ले सकते हैं क्योंकि वहाँ चमक से उतनी परेशानी नहीं होती। अगर पत्थर की सतह दानेदार या खुरदुरी है तो उसे ऐसे स्थान पर लगाएँ जहाँ पानी का उपयोग या बाहर की जगह हो – अंदरूनी ड्राइंगरूम में खुरदुरा पत्थर धूल पकड़ सकता है, वहीं बाहरी गार्डन में यही पत्थर प्राकृतिक लुक देगा। फिनिश चुनते समय सफाई और रखरखाव को भी दिमाग़ में रखें – उदाहरण के लिए, नक्काशीदार पत्थर सुंदर तो लगेंगे लेकिन उनकी सफाई में मेहनत अधिक होगी, जबकि सिंपल फिनिश पत्थर संभालना आसान होता है।
स्थापन (इंस्टालेशन) में वास्तु नियम अपनाएं: पत्थर बिछाते समय कुछ वास्तु निर्देश पालन करने से उसका अधिक लाभ मिलता है। कोशिश करें कि फ़र्श लगाते समय पत्थर की लाइनें पूर्व-पश्चिम दिशा में रहें
– यानी पत्थर इस दिशा में एक के बाद एक जुड़ें। इससे एकरूपता और ऊर्जा संतुलन रहता है। पत्थर बिछाने से पहले ज़मीन पूरी तरह समतल करें और दक्षिण-पश्चिम कोने से शुरू करके उत्तर-पूर्व की ओर बढ़ें, ताकि ऊर्जात्मक दृष्टि से भारी से हल्के की ओर निर्माण हो। घर के दक्षिण और पश्चिम भाग का फ़र्श थोड़ा ऊँचा रखें (कुछ मिलीमीटर का ढलान), इससे स्वभावतः वास्तु दोष कम होते हैं और पानी भी उत्तर/पूर्व की तरफ बहने में मदद मिलती है
। पत्थर लगाते समय उसके नीचे (खाली जगह) न रहने दें – अच्छी लेवलिंग और पूरा ग्राउट भरें, क्योंकि खोखले स्थान ध्वनि और ऊर्जा दोनों को विचलित करते हैं।
सफाई और मरम्मत का ध्यान रखें: कोई भी पत्थर लगवाने के बाद उसकी नियमित सफाई और देखभाल बेहद ज़रूरी है। वास्तु शास्त्र कहता है कि गंदगी, दाग-धब्बे या टूट-फूट नकारात्मक ऊर्जा को बढ़ाते हैं
। इसलिए मार्बल/ग्रेनाइट को समय-समय पर क्लीनर से पोंछें, आवश्यक हो तो फिर पॉलिश करवाएं। टाइल्स के ग्राउट लाइनों को साफ रखें। जहां दरार दिखे उसे तुरंत भरवाएं या बदलवाएं। इस प्रकार पत्थर न सिर्फ दीर्घकाल तक टिकेगा बल्कि घर का ऊर्जा स्तर भी उच्च बना रहेगा।
वास्तु संतुलन बनाये रखने के लिए विशेषज्ञ से सलाह: यदि आप सुनिश्चित नहीं हैं कि किस कमरे में कौन सा पत्थर लगे या कोई दिशात्मक दोष है, तो किसी प्रमाणित वास्तु विशेषज्ञ या अनुभवी इंटीरियर डिजाइनर से परामर्श कर सकते हैं। वे आपके घर की दिशा और नक्शे को देख कर उचित पत्थर और रंग सुझा सकते हैं। हालाँकि, यदि उपरोक्त सिद्धांतों का ध्यान रखेंगे तो अधिकांश मामलों में आपको सही दिशा मिलेगी। अंततः, पत्थर चुनते समय अपनी व्यक्तिगत पसंद, बजट और घर की आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखें – वास्तु अनुकूलता के साथ-साथ घर आपको सौंदर्य और आराम भी देना चाहिए।
निष्कर्ष:
सारांश रूप में, वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में प्राकृतिक, उच्च गुणवत्ता वाले पत्थरों का प्रयोग करना उत्तम रहता है। सही पत्थर का चयन करते समय उसके रंग, बनावट और प्रकार को घर की दिशा व प्रयोजन के अनुरूप मिलान करना चाहिए। मुख्य द्वार की संगमरमर दहलीज़ से लेकर पूजा कक्ष का श्वेत फ़र्श, रसोई का संतुलित रंग वाला स्लैब, बाथरूम का सुरक्षित पत्थर, गार्डन का रॉक गार्डन – ये सभी तत्व मिलकर आपके घर को वास्तु सम्मत बनाते हैं। जब पत्थर वास्तु अनुकूल होते हैं, तो वे न सिर्फ़ भवन की शोभा बढ़ाते हैं बल्कि घर में सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और सकारात्मक ऊर्जा का आगमन आसान बनाते हैं। याद रखें, घर की बुनियाद से लेकर फर्श और दीवारों तक, हर पत्थर आपके सपनों के घर की कहानी कहता है – इसे साकार करते समय वास्तु के सिद्धांत उस कहानी में खुशहाली के रंग भरने में आपकी मदद करेंगे।